मनुष्य की समझ जैसे जैसे सेक्स के बारे में बढ़ती है वैसे  वैसे ही उसमें विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षण भी बढ़ता है और जब यह आकर्षण अति की सीमा लांघ जाता है तो वह काम ज्वर से पीड़ित हो जाता है।  यह स्थिति व्यक्ति को पतन के रास्ते पर ले जाती है।  जो व्यक्ति अधिकांश समय सेक्स के बारे में सोचते रहते हैं तथा किसी भी सुंदर स्त्री को देख कर उत्तेजक कल्पनाएं करने लगते हैं उनके स्नायु, कल्पनाओं के कारण जल्दी उत्तेजित हो जाते हैं वे व्यक्ति स्वप्नदोष, शीघ्रपतन एवं मानसिक तनाव से पीड़ित हो जाते हैं।  हमारे समाज ने सेक्स की पूर्ति के लिए विवाह की एक लक्ष्मण रेखा खींची हुई है तथा साथ ही यह सीमा व प्रतिबंध भी निर्धारित किये हैं कि सेक्स संबंध केवल पत्नी के साथ ही होने चाहिए लेकिन कुछ लोग इसके प्रति इतने हाइपर हो जाते हैं कि उनके लिए सेक्स ही सर्वोपरि हो जाता है।  उनके आकर्षण का केंद्र अपनी पत्नी से ज्यादा अन्य स्त्रियां ही होती है।  इसके लिए चाहे उन्हें वेश्या या कालगर्ल के पास ही क्यों न जाना पड़े।  वे अपना विवेक व समझ सब कुछ भूल जाते हैं। इस भूल का परिणाम भी उन्हें विभिन्न यौन रोगों के रूप में भोगना पड़ता है। 

एड्स जैसी जानलेवा बीमारी बढ़ने का कारण भी हाइपर सेक्सुअलिटी ही जिम्मेदार होती है।  कुछ लोग सेक्स के प्रति अंतहीन ऐसा सिलसिला बना लेते हैं जिससे वे निकल ही नहीं पाते क्योंकि वे सेक्स को जीवन का एक हिस्सा नहीं बल्कि जीवन को ही सेक्स मानते हैं।  बलात्कार के केस इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।  उनके लिए तो स्त्री के प्रति एट्रैक्शन ही मुख्य होता है।  जब भी मौका अनुकूल होता है तथा जब वे सुविधाजनक स्थान पा जाते हैं तो किसी भी स्त्री को बर्बाद कर डालते है बाद में  चाहे वे कानून के शिकंजे में आ जाय या सामाजिक प्रताड़ना झेले इसका भी उन्हें कोई पछतावा नहीं होता।  इसे ही हाइपर सेक्सुअलिटी रोग कहते हैं।  अतः व्यक्ति को अपने सामाजिक मूल्यों व पारिवारिक संस्कारों को ध्यान में रखकर ही अपना गृहस्थ जीवन बिताना चाहिए क्योंकि मर्यादा में रहकर ही वह अपनी सेक्स लाइफ को सुखमय रख सकते हैं.