आचार्य वात्स्यायन ने कामसूत्र की रचना करके स्त्री-पुरुषों को मूल मंत्र प्रदान किया है , क्योंकि विवाह में शारीरिक मिलन से ज्यादा मानसिक मिलन का महत्व है और इसी बात को ध्यान में रखकर स्त्री-पुरुष द्वारा आपसी सूझ-बूझ व ज्ञान से विवाहित जीवन को सफल, सुखद एवं आनंददायक बनाया जाता है। इसी सूझ-बूझ व ज्ञान का वर्णन वात्स्यायन द्वारा कामसूत्र में किया गया है। प्रत्येक पुरुष अपने जीवन में एक ऐसा साथी चाहता है जो उसका संपूर्ण राजदार हो, जिससे उसका कुछ भी छिपा न हो। उसे अपने साथी का शरीर भी उतना ही प्यारा हो जितना स्वयं का और उनमें तेरा-मेरा जैसी कोई भावना न हो। जो हर स्थिति में उसका साथ दे तथा कदम से कदम मिलाकर उसके साथ चले। ऐसा साथी पुरुष के लिए पत्नी से बढ़कर कौन हो सकता है। अतः विवाह के अंतर्गत पति-पत्नी दोनों अपने-अपने कर्तव्यों को समझते हुए ही अपने विवाहित जीवन को अंत तक सुखमय व आनंदमय बनाए रखें यही कामसूत्र का वास्तविक ज्ञान है। यहाँ हम पति-पत्नी के लिए कुछ सुझाव संक्षेप में बता रहे हैं ताकि वे उस पर अमल करके अपने विवाहित जीवन की सफलता सुनिश्चित कर सकें .
जीवन साथी के प्रति लगाव : विवाह के दिन पति-पत्नी एक दूसरे को वचन देते हैं कि वे हर स्थिति में चाहे दुःख हो, सुख हो, गरीबी हो, अमीरी हो, स्वस्थता हो या अस्वस्थता हो एक-दूसरे का साथ निभाएंगे। ऐसा मानकर चलने वाले पति-पत्नी सदैव सुखी रहते हैं। पति-पत्नी को यह बात भी नहीं भूलनी चाहिए की उनके बीच भी कभी न कभी किसी कारण से तकरार हो सकती है। लेकिन इस तकरार में किसी भी बात को इतना तूल नहीं देना चाहिए कि दिलों में गांठ पड़ जाए। अतः पति-पत्नी में तकरार भले ही हो किन्तु वह तकरार एक-दूसरे की भलाई, तरक्की व उन्नति के लिए ही होनी चाहिए। ऐसी तकरार दोनों के बीच बाद में निकटता ही बढाती है क्योंकि इस तकरार के पीछे इरादा नेक होता है।
विवाहित जीवन योजनावद्ध तरीके से चलाएं : आज के परिवारों में काफी बदलाव आ चुका है तथा उनकी सामाजिक व आर्थिक मान्यताएं भी बदल चुकी हैं जिसमें योजनाबद्ध तरीके से चलना जरुरी हो गया है। बच्चों का जन्म आपसी सहमति से होना चाहिए। ऐसा भी नहीं होना चाहिए कि यदि पत्नी गर्भधारण कर ले तो बच्चा उत्पन्न होने तक की सारी जिम्मेदारी उसी पर छोड़ दी जाए। यदि बच्चे के रूप में लड़की हो जाए तो इसका दोष कभी भी पत्नी को न दें क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार पति के क्रोमोसोम ही होते हैं। दम्पति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही संतान उत्पन्न करनी चाहिए ताकि बच्चों का लालन-पालन ठीक ढंग से हो सके और पत्नी का स्वस्थ्य भी अच्छा बना रह सके।
विवाहित जीवन में सहनशीलता : विवाह के बाद कभी-कभी शुरूआती दौर में पति-पत्नी के बीच मानसिक भावनाओं एवं शारीरिक मिलन का सामंजस्य ठीक नहीं बैठता अतः ऐसी स्थिति में पति-पत्नी को आपस में सहनशीलता बरतनी चाहिए क्योंकि सहनशीलता और एक-दूसरे के प्रति सच्ची सहानुभूति से कई मसले आसानी से सुलझ जाते हैं।
वैवाहिक जीवन में आपसी व्यवहार : वैवाहिक जीवन की सफलता में आपसी व्यवहार का अपना एक अहम् महत्व होता है क्योंकि इसके बारे में एक बड़ी सीधी सी बात है कि किसी भी इंसान को दूसरे इंसान के प्रति वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जैसा व्यवहार वह अपने लिए चाहता है। यदि आप किसी को मान-सम्मान देंगे तो वह भी आपको मान-सम्मान देगा। इससे आपकी साख व प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इसी प्रकार पति-पत्नी को एक दूसरे के विचारों तथा भावनाओं को समझते हुए आपस में सदव्यवहार बनाए रखना चाहिए।
वैवाहिक जीवन के मुख्य कर्तव्य : वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी के लिए सबसे मुख्य कर्तव्य यही है कि वे दोनों एक-दूसरे के प्रेम प्यार, वफादारी और सहानुभूति द्वारा अपने विवाह रूपी पौधे को सींचते रहें ताकि उनका विवाह रूपी पौधा खूब फैले-फूले। प्यार प्रदर्शित करने से प्यार बढ़ता है और सुखी व सफल विवाहित जीवन के लिए एक-दूसरे के प्रति प्यार भरे शब्दों की सबसे ज्यादा जरुरत होती है। यदि पति-पत्नी में आपसी तालमेल हो तो वे दोनों आपस में एक-दूसरे को सच्चा मित्र व हितैषी मानते हैं और सच्चे मित्र हमेशा एक-दूसरे की ख़ुशी के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने के लिए तत्पर रहते हैं।